Thursday, November 22, 2007

हिमाचल भाग ३

तीसरा दिन: यह दिन बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि आज हम रोहतांग के रस्ते कीलोंग जाने वाले थे| हमारी यात्रा प्रारंभ हुई दस बजे के आस पास| पहला पड़ाव था कोठी गांव| इंटरनेट पर यहाँ की तस्वीरों ने हमारा दिल मोह लिया था| पर शायद हम गलत समय पर पहुंचे थे| हालांकि जगह ने हमें निराश नहीं किया और हमने चाय नाश्ते का अच्छा आनंद उठाया, लेकिन वो जगह शायद सिर्फ आने वाले कुछ पलों की एक झांकी भर ही थी| बौर्डर रोड्स के द्वारा दुर्गम स्थलों पर भी बनाई सड़कों पर हम अपनी मंजिल की और बढ़ चले| अगला पड़ाव था मधी| मंत्रमुग्ध कर देने वाली जगह है यह| तेज़ हवा मानो आपको अपने साथ चलने के लिए बुला रही हो| चारों और बर्फ का ताज पहने पहाड़ और नीचे कन्दराओं में दिखती सड़कें जिन पर सफर कर के आप वहाँ पहुँचते हैं|

अगली मंजिल थी रोहतांग| किताबों में पढ़ा , तस्वीरों में देखा और किंवदंतियों में सुना| हम वहीं खड़े थे| एक ऎसी सराबोर कर देने वाली अनुभूति जिसे समाहित करने में वक़्त लगता है परन्तु एक बार महसूस होने के बाद आप जिसे भुला नहीं सकते| १३५०० फुट की ऊंचाई पर जहाँ शायद सांस लेने में भी कठिनाई होती हो| हम ऐसी ही जगहपर खड़े थे| ऊपर से बर्फ मानो हमको निमंत्रण दे रही थी एक अलग ही अंदाज़ के खेल का, जहाँ सिर्फ जीत थी और किसी की हार नहीं| बिना कोई समय खोये हमने कुछ घोड़े कर लिए| मगर मैं और मेरी एक मित्र ने उस एहसास को अपने क़दमों से छूने का निर्णय भी किया था| तो ५ घोड़े जिनमे से दो पर कोई सवार नहीं थे चल पड़े बर्फ की ओर| और सच मानिए वह यात्रा अविस्मरणीय है| बर्फ तक पहुँचते पहुँचते भी आप इतने विस्मित हो चुके होते हैं कि शायद सिर्फ खुदा को इतनी हसीन धरती के लिए शुक्रिया कहने के अलावा आपके पास कोई शब्द नहीं बचते| एक बार बर्फ पर पहुँचने के बाद आप बस ऊपर जाने के तमन्ना रखते हैं| और ऊपर| और ऊपर| जब तक आपकी या तो साँस न फूल जाये या वक़्त की सीमायें आपको न बाँध दें (क्योंकि कीलोंग तक भी समय रहते पहुंचना है)| बस इन ही अनुभूतियों के साथ हम वहाँ बर्फ के साथ अठखेलियाँ करते रहे| और महसूस करते रहे शायद विश्व की ऊंचाई को| इस से ज्यादा मेरे पास शायद शब्द नहीं हैं और तस्वीरें ज़्यादा बयान कर सकती हैं| तदोपरान्त, थके मगर एक सुखद, अनंत एहसास के साथ हम चल पड़े अगले पड़ाव की ओर|

रोहतांग से कीलोंग का रास्ता बेहद खूबसूरत है| तब और भी जब आप जानते हों कि सड़क पर आपकी गाड़ी अकेली नहीं लेकिन गिनती की गाड़ियों मैं से तो एक ज़रूर है (रोहतांग पास नवम्बर मैं बंद हो जाता है)| चंद्रा नदी के किनारे कभी ऊपर चढ़ते तो कभी नीचे उतरते, साँस रोक देने वाली घाटियों के बीच जब सूरज का आखरी सलाम पहाड़ों की चोटी पर छटा बिखेरता है तो आप वाह के अलावा शायद कुछ कहने की स्थिति में नहीं रह जाते हैं| आपस में बात करने हेतु शब्दों को कम पा कर आप बस शांत चले जाते हैं नदी के शोर में कुछ सुनने की कोशिश करते हुए|

अंततः हम पहुंचे चंद्रभागा होटल, जहाँ हमारे लिए ही नहीं परन्तु वहाँ मौजूद सज्जन के लिए भी यह आश्चर्य का विषय था कि हमने बुकिंग कैसे की| उनके कार्यकाल में यह पहला मौका था और हमारे लिए और भी विस्मयकारी यह तथ्य कि उस होटल में सिर्फ हम ही थे ! बेहद मददगार यह सज्जन फिर हमारे लिए बहुत ही स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था करी और हमारे रहने को भी सर्वद्रिष्टि से आरामदायक बनाया| एक अविस्मरणीय रात के बाद सुबह हम कीलोंग भ्रमण के लिए निकले हैं| वहाँ की चट्टानों की कशिश को नज़रंदाज़ करना आपके बस में नहीं, तो आप बस फिर पहाड़ों पर अपने नौसिखिये अंदाज़ मैं चढ़ाई कर देना चाहेंगे| और समेट ले जायेंगे कुछ यादों का एक पुलिंदा|

फिर शुरू हुई हमारी मनाली की वापसी यात्रा| फिर एक बार रोहतांग पर हाल्ट लेकिन इस बार झील के किनारे जहाँका तापमान इतना कम कि कपड़ों की कई तहों के बीच भी आपकी कंपकंपी छूट जाये| अभूतपूर्व नज़ारे जहाँ से आपका हिलने का मन न करे| कुछ देर में निकलने के बाद आप फिर मढ़ी में रूक कर खाना खा सकते हैं| अत्यंत स्वादिष्ट भोजन बेहद वाजिब दामों पर| और यहीं एक ऐसा नज़ारा जो मेरे लिए इस यात्रा के सबसे सुखद क्षणों में से एक है| बादलों के बीच से मानो कोइ टोर्च ले कर ऊपर से झाँक रहा हो| गोया कोई इस धरती की खूबसूरती को निहारना चाहता हो|

मनाली तक पहुँचते पहुँचते आपको यह ख्याल सताने लगता है की अगले दिन आपको लौट जाना है| फिर भी रात का वो मंज़र, जिसके आप अभी आदि हो चुके हैं, जहाँ आसमान में तारे इतने साफ दिखते हैं, आपको छू लेटा है| वही तारे जो शायद शहरों की धुल धुएं में लिपटी हवा की चादर के पीछे कहीं खो जाते हैं| तारे जिन्हें आप तोड़ लेना चाहे शायद| और इस बार आप जॉन्सन बार में खा सकते हैं| वाजिब दामों पर मदिरा और आप के पसंद का संगीत (और भी अच्छा अगर आपके पास खुद का आई-पोड हो तो)| नाचते गाते वापस आ कर आख़िरी रात आग पर एक बार फिर आलू पका कर खाना| कौन वापस आना चाहेगा|

अंतिम दिन : आख़िरी दिन आप बीते कुछ दिनों के पल समेट लेना चाहते हैं| यूं घूम फिर कर| कुछ सोचते| अनमने से| वापस जाने को आतुर नहीं| किसी अदृश्य शक्ति से अनुनय विनय करते की हमें यहीं रख ले| वन विहार की एक सैर जहाँ आखरी कुछ चित्र खींच सके| और फिर अंतिम विदाई दे कर एक अत्यंत सुखद यात्रा को, वापस शहरों की ओर|
ऐसे समाप्त होती है हमारी मनाली यात्रा| और जी हाँ उसी दिन तेंदुलकर फिर ९९ पर आउट हो जाते हैं|

Some Logistic Highlights :
Cost of stay at HPTDC log huts in Manali: Rs 4500 per day (can accomodate 6 people easily)
Cost of cab to Keylong : Rs 3500 (may vary in season)
Cost of stay at HPTDC hotel Chandrabhaga at Keylong: Rs 450
Cost of paragliding at Solang : Rs 1500
Delhi-Manali Volvo bus ticket cost : Rs 800-850
Cost of horses at Rohtang : Approx| Rs 300
Recommended places to eat : Johnson's Cafe/Bar/Restaurant, Khyber and at Madhi while on way to Rohtang
Points to be noted : Most eating places don't accept card in Manali| And the only ATM working around Mall road is SBI| So in case you wish to avoid transaction charges, do keep sufficient cash|