Wednesday, July 25, 2007

लल्लन

यह प्रयास है उन अनगिनत लोगों को समर्पित जो इस देश के उस विशाल जन-समूह के एक अंग हैं जिसे हम मिडिल क्लास के नाम से जानते हैं
यह कहानी है लल्लन प्रसाद की जो हमारे इस देश के किसी कोने में (कोई सा भी कोना हो सकता है क्योंकि कहानी शायद फिर भी वही रहेगी) जन्मे और इस जनसमुद्र में किसी बूँद की तरह खो गए

आये लल्लन बडे उल्लास में,
सारा गाँव दिए दमकाए,
जन्मे कृष्ण कन्हैया मानो,
मात-पिता हर्षाये
किलकारी कब हुई ख़त्म,
लल्लन लगे नाम बुदबुदाये ,
विद्यालय की ओर तब,
नन्हे कदम बढाए

पहुंचे कक्षा में,
फिसलती निक्कर पहन आये,
टीचर पूछी नाम जब,
होशियार लल्लन दिए बतलाये,
पूछी फिर जब वो,
"क्या बनोगे तुम लल्लन?"
लल्लन असमंजस में उलझाये
बूझ अबूझ का अंतर जाने ना,
अनुत्तर वो रह आये

पग लंबे हुये,
लल्लन पास होते आये,
टीचर फिर पूछी उनसे तब,
"बनोगे लल्लन?"
पहली बार वो मुस्काये,
बोले, पायलट हम बन जाये,
बोली टीचर उनको,
चलो हम तुम्हे पायलट बनाए,
खुली धुप में एक टांग पर,
उड़ते रहे लल्लन बौराए,
भूत उतरा एक ही दिन में,
पायलट से तौबा कर आए

हुई निक्कर छोटी जब,
लल्लन पैंट पहन कर घर आये,
पूछे चाचा जब उनसे,
क्या बनोगे लल्लन,
लल्लन फिर मुस्काये,
बोले, खिलाडी हम बन जाये,
दहाड़े चाचा गुर्रा कर,
कौन सा खेल जो तुमको भाये,
पढो लिखो बस तुम अब,
जो ना टांग तुम्हारी तोडी जाये

निखरे कुछ और रंग,
दुनिया भी आकर्षक लग आये,
पूछा तब दद्दु ने,
हमारा पोता क्या बन ना चाहे,
लल्लन हुये गम्भीर,
बोले, पेंटर हम बन जाएँ,
लगे दद्दु चिल्लाने,
कौन इसे यह पाठ पढाये,
इस से पहले के यह ब्रुश उठाएँ,
हरिद्वार हम हो आये


किशोरावस्था का प्रसंग ,
फिर कुछ प्रेयसियों के संग,
आंखो में मस्ती के रंग,
पूछी माताजी, क्या बनोगे लल्लन,
लल्लन दिए कॉलर झटकाये ,
बोले, हीरो हम बन जाये,
दिया चपत गाल पर माँ ने,
खबरदार जो भांड गिरी पर आये,
कान उमेठे फिर जो बस,
सारे फिल्मी रंग आंसू बन आये

पहुंचे कालेज में फिर लल्लन,
दिल बड़ा घबराए,
पहले दिन ही निकले घर से,
बाप दिए हड्काये,
रखना याद इतना बस,
होगा दरवाज़ा यह बंद,
फर्स्ट क्लास जो तुम ना लाए,
पढे लिखों के दुनिया में,
नम्बरों का आंकड़ा,
कभी कम ना आये

इसी उधेड़ बूँद में बीते दिन,
कभी डाक्टर तो कभी,
इंजीनियर वो बन ना पाए,
घिसी चप्पल, लटकाया झोला,
लीडरी भी वोह ना कर पाए
परिवार भी हुआ ट्रस्ट जब,
आयी ए एस ना वो बन पाए
मन माना ना माना,
पिताजी दिए शादी करवाये,
लगा जुगाड़ जब कहीँ से,
बाबू वो बन आए

जा रहे हैं देखिए,
किसी सड़क पर वो ले कर,
जूनिअर लल्लन को काँधे पर,
फिर कुछ आंखों के सपने,
कुलबुलाते जन्म ले रहे उधर
फिर एक लल्लन की ललक,
फिर एक लल्लन की कसक,
और दोनो ही का बस एक सफ़र,
किसी मोड पर खडे,
एक खामोश सवाल तक