Saturday, June 23, 2007

चंद बूँदें ...

सूखी पलकों पर बारिश की चंद बूँदें,
थिरकती हुई चहरे पर गिर कर,
भिगोती हुई अंतर्मन तक,
समाती मिट्टी मॆं
मिट्टी की सौंधी खुशबू,
उद्वेलित करती,
रस भरती नशीले,
यह बारिश की चंद बूँदें
मैंने देखा है ज़िन्दगी को खिलते,
इन बूंदों मॆं,
कभी पानी मॆं कुलाचे भरते,
नन्हे पैरों मॆं,
तो कभी बरसाती के नीचे,
सिमटी हुई एक मुस्कुराहट मैं
अठखेली करती चूडियों मॆं,
तो कभी भीगे कपड़ों मॆं लजाती,
बालाओं के बालों मॆं
महसूस किया है मैंने,
उत्श्रन्खल मन के भावों को,
इस बारिश के उन बाणों मॆं,
एक तमन्ना फिर जीने के,
मद मदिरा के उन्मादों मॆं,
बहारों की फुहारों मॆं,
तो कभी जल के तांडव मॆं,
इस वेग को,महसूस कराती हैं,
आह्लादित करती,
यह चंद बूँदें,
मनमौजी, बारिश की यह, चंद बूँदें

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